पुष्प-पात से भरा कोई यह
बाग नहीं है
पक्षी कलरव और कोकिला
राग नहीं है
नहीं नीर से पेड यहाँ पर
जाते सींचे
और घास के नहीं बिछे हैं
यहाँ गलीचे
यह तो अमर शहीदों की
अनमिट थाती है
रक्त-सने बलिदानों की
पावन माटी है
नजर यहाँ अब भी आतें हैं
वो हत्यारे
चली हुई अनगिन गोली की
वो बौछारें
शव को निज अंतर में समेटे
यहाँ कूप है
मानव की दानवता का
प्रत्यक्ष रूप है
बाल, वृद्ध, नर-नारी सबपर
हुए त्रास का
शोक भरा यह बाग़ नहीं है
हास-रास का
आओ आकर अश्रु पुष्प
चढाओ तुम भी
शोक भरे गीतों को केवल
गाओ तुम भी
ले ललाट पर कर लो तुम
माटी का पूजन
इस माटी का मोल नहीं
कर सकता कंचन
इस माटी में अमर शहीदों का
शोणित है
दीप जलाया आजादी का
यह वह घृत है