Last modified on 6 फ़रवरी 2018, at 18:04

आलिंगन में प्रिय/ कविता भट्ट

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 6 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट' |संग्रह= }} [[Category: ताँका]...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1
कभी पसारो
बाँहे नभ -सी तुम
मुझे भर लो
आलिंगन में प्रिय !
अवसाद हर लो।
2
उगता रवि
धरा का माथा चूमे
खग-संगीत
मिले ज्यों मनमीत
दिग्-दिगन्त झूमे।