Last modified on 7 फ़रवरी 2018, at 16:50

अरी पवन !/ज्योत्स्ना शर्मा

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:50, 7 फ़रवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

33
झीनी चादर
सिहरा सा सूरज
ढूँढे अलाव।
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव !
34
ठिठुरी धूप
ढूँढे है ,कहाँ गया ?
सूरज भूप ।
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप ?
35
तुहिन पुष्प
अम्बर बरसाए
धरा लजाए ।
नवोढ़ा , सिमटी -सी,
ज्यों छुपी -छुपी जाए ।
36
रिश्ते प्यार के
चाहा था फूलें- फलें
सँवरें रहें
क्या जानूँ कैसे हुए
अमर बेल बनें
37
चुनती रही
काँटे सदा राह से
और वे रहे
इतने बेफिकर
मेरी आहों से कैसे !
38
अरी पवन !
ली खुशबू उधार
कली -फूल से
ज़रा कर तो प्यार
न कर ऐसे वार !
39
मंज़ूर मुझे
मेरे काँधे बनते
तेरी सीढ़ियाँ
तूने दुनियाँ रची
मिटा मेरा आशियाँ
40
सजे चमन
विविध रंग पुष्प
खिलखिलाएँ
आशा हो नयन में
सदा सन्मार्ग पाएँ ।