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अधर सजे/ज्योत्स्ना शर्मा

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41
अधर सजे
मधुर मुस्कान से
शिखर छू लें
दमके गगन में
ज्यों नव विहान हो !
42
अरे बटोही
मंजिल है मुस्कान
नहीं अधूरी
मुक्त मना- सा बाँट
हो चाह सभी पूरी ।
43
हाट रात की
तुम भी ले आओ न !
कुछ सपने
ऊँचे और प्यारे से
मीठे ,उजियारे से ।
44
गाओ रे मन
मैंने गीत सजाए
यहाँ प्रीत के
कठिनाई पे जीतें
मजबूत इरादे ।
45
धूप सुहानी
क्यों तमक गई हो ?
राह रोकता
देखो -मेघ रंगीला ,
कुछ तो ठंड खाओ !
46
रे मन तेरा
अद्भुत व्यवहार
दीप- नगरी
है जगर- मगर
हवा पहरेदार !
47
मोह ने बाँधा
बिछोह ने छुडाया
रिश्ते जंजीरे
मन ने पहचाना
अपना या पराया ।
48
बोझ न ढोना
क्या हीरे और मोती
संग न जाएँ
सुन्दर कर्म भले
औ’ मुस्कान सुहाए ।