Last modified on 7 फ़रवरी 2018, at 18:34

ओढ़के बैठा / ज्योत्स्ना शर्मा

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:34, 7 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योत्स्ना शर्मा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

51
धानी चूनर
ऋतुराज करते
फूलों की वर्षा!
52
गेंदे का तुर्रा
ऋतुराज पधारे
पगड़ी धारे!
53
था जर्द पत्ता
थाम रहीं कोपल
फूलों की सत्ता!
54
कैसा आघात!
किरणों की मस्ती पे
तुषारापात।
55
पथ ओझल
ठिठुरते क़दम
चला दिवस।
56
छुपा ले गई
आँचल में सूरज
शीत नागरी।
57
ओढ़के बैठा
नटखट सूरज
झीनी चादर।
58
नन्हा बटोही
चला गुनगुनाता
नीले पथ पर।
59
उजली लगी
नन्हें से अधरों पे
बिखरी हँसी.
60
उठे जो नैन
प्रेम भरे मुख पे
फैला आलोक।

-0-