दीर्घ श्वास की लघु ताल पर धीमे-धीमे जीवन की लय पर खोता चला गया कहीं उसका निश्छल-सुंदर-सा मन एक था उसका कोमल अंतःकरण क्या मिल गया उसे पाकर यौवन जिसके प्रकट होने पर उलझता गया मन सुख-समृद्धि की परिभाषा में धन-वृद्धि की अभिलाषा में एकत्र करना चाह रहा था असीम भौतिक सुख-साज भूल गया वह तुतलाना माँ की गोदी में सिर रखकर सो जाना जिस सुख के समक्ष सारे सुख हैं निरर्थक कुर्सी, धन, मान प्रसिद्ध नाम का यद्यपि सुख। </poem>