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परिचयय हमारा / मनीषा शुक्ला

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जब समय गढ़ने चलेगा पात्र नूतन
तुम नहीं देना कभी परिचय हमारा

धर चलेगी अंजुरी पर अंजुरी सौभाग्यबाला
प्रेम की सुधियां चुनेंगी बस उसी दिन घर-निकाला
इक कुलीना मोल लेगी रीतियों से हर समर्पण
जीत कर तुमको नियति से, डाल देगी वरणमाला
ओढ़नी से जोड़ लेगी पीत अम्बर,
और टूटेगा वहीं निश्चय हमारा

मांग भरना जब कुँआरी, देखना ना हाथ कांपे
मंत्र के उच्चारणों को, यति हृदय की भी न भांपे
जब हमारी ओर देखो, तब तनिक अनजान बनना
मुस्कुराएँगी नयन में बदलियां कुछ मेघ ढांपे
जग नहीं पढ़ता पनीली चिठ्ठियों को
तुम समझ लेना मग़र आशय हमारा

स्वर्गवासी नेह को अंतिम विदाई सौंप आए
अब लिखे कुछ भी विधाता, हम कलाई सौंप आए
अब मिलेंगे हर कसौटी को अधूरे प्राण अपने
हम हुए थे पूर्ण जिससे वो इकाई सौंप आए
उत्तरों की खोज में है जग-नियंता
इक अबूझा प्रश्न है परिणय हमारा