Last modified on 27 फ़रवरी 2018, at 17:28

न पूछो / कविता भट्ट

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:28, 27 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


बेला – आजन्म आजादों की साहब!
खंडित प्रतिमानों के मोल न पूछो
शेखर-चन्द्र रखे आजादी के युग वे
उनके कैसे गूँजे थे वे बोल न पूछो !

खुली हवा में साँस ली जिन्होंने पहली
वे अब कहते हैं; ये सब झोल न पूछो
छत पर रखते गमले सुंदर फूलों वाले
नींव के पत्थर कितने अनमोल न पूछो!

राष्ट्र-भावना दम भर तो दम भर ले
संभावना के दाम और खोल न पूछो
लोकतंत्र- कर्त्तव्य स्वाहा अधिकारों में
अब इस बजते ढोल की पोल न पूछो !

बिन संघर्ष मिले इन्हें शिक्षा के मन्दिर
वीर सपूतों के बलिदानों के तोल न पूछो
चक्रव्यूह में फँसे युवा; कैसा देश कैसा प्रेम?
विष नारों में घुला; हालत डाँवाडोल न पूछो !