Last modified on 2 मार्च 2018, at 19:38

तुम्हारा छूना / अनुपम सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 2 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपम सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मत छुओ इस तरह बार- बार
तुम्हारे छूने से
मैं गल कर राँग हो जाती हूँ
कहीं अन्दर ही अन्दर
यह जानते हुए भी
की तुम्हारा छूना एक छलावा है

यह भी पता है की तुम्हारे इस छलावे
और अपने घुलते जाने की अन्तिम अवस्था मे
कुछ भी शेष नहीं रह जाऊँगी
फिर भी अच्छा लगता है तुम्हारा छूना
 
तुमको पाने की ललक
मेरी कोई स्नायविक कमजोरी नहीं
अपने को पाने और बचाए रखने की
अन्तिम कोशिश है।