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अधूरा पुल / अनुपम सिंह

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जब दुपहरिया कुम्हार के आँवे-सी
तपने लगती है
और धूल आग की तरह गर्म
जब कुत्ते मिट्टी को गहरे खोद
गर्मी से बचने की कोशिश करते हैं
और गोरैया नल के मुँह से लटकर
हाँफती है पानी के लिए
तब कुछ ताम्बई रंग की औरतें
खेत काट रही होती हैं
और कुछ इनसाननुमा लोग
ईंट के भट्ठे पर पक रहे होते हैं
ईंटों से भी गहरा है उनके देह का रंग
कुछ झाँवे जैसा

जब कुछ लोग दुपहरिया के डर से
दरवाज़ा बन्द कर अन्धेरा कर लेते हैं घरों में
तब कुछ बच्चे भीट की तरफ़
लेकर चले जाते हैं अपनी बकरियाँ
बकरियाँ चरती रहती हैं
बच्चे पेडचील्हर खेलते हैं
एक दिन ईंट के भट्ठे से भागता है एक आदमी
और बच्चों की गोल में शामिल हो जाता है
खेत काटती औरत छहाने आती है
वह भी बच्चों में शामिल हो जाती है

आदमी औरत मिलकर
बच्चों को सुनाते हैं
लकड़सुँघवा के क़िस्से
लकड़सुँघवा पीठ पर बोरा लादे आता है
बोरे में छुपाए रखता है
तरह-तरह की लकड़ियाँ

लकड़ी सुँघा वश में कर लेता है बच्चों को
बच्चे जब तक होश में आते हैं
तब तक डाल दिए गए होते हैं
किसी बन रहे पुल की नींव में
सभ्यताओं को जोड़ने के लिए

इसीलिए तो कहते हैं
कि पुल जीवधारी होते हैं
पुल के पाँव नहीं होते
वे टँगे रहते हैं बच्चों की पीठ पर
पुल चढ़कर आता है आतातायी
पुल से कवि कलाकार संगीतकार आते हैं
बारातें गुज़रती हैं
अर्थियाँ आती हैं
पुल से पार हो जाती हैं कई- कई पीढियाँ
बच्चे पुल को पार करते बड़े होते हैं
खोजते रहते हैं जीवधारी पुल का तिलिस्म
पुल अधूरा ही अटका रहता है उनकी स्मृति में।