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टुख्ख / ओम बधानी

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टुख्ख, यनि कांगसा
जु मनखि,चैन-पसु, डाळि-बोटि
मर्ंया-ज्यूंदा सबु म पकदि
एक यनि तृष्णा
जींकु क्वी ओर छोर नी
टुख्ख पौंछणक दिन रात
हाड-मांस गळौण पड़दन अर
काया ह्वै जांदि क्वांसि
जन-जन टुख्ख जथैं चड़ेंदु
उन-उन लमडणा कि डार भि बडदि जांदि
जु भ्वां फंडा छन
सि दिखेण लगदन छोटा-किरमोळा, अर
एक दिन इन औंदु कि
भ्वां फंडु कुछ भि नि दिखेंदु
पर तबरेंक टुख्ख कि कांगसा म
बथौं हमु तैं मिलै देंन्दु माटा म
हम खारू ह्वै जांदौं
पर कांगसा नि मिटदि
बथौं क गैल फिर टुख्ख पौंछणकि कोसिस
खाद बणिक डाळा क सारा फिर टुख्ख पौंछणकि कोसिस
अर फिर डाळा क गैल हम मिलि जांदौं माटा म
यु चक्र इनि धुमदि रंदु, पर
कभि नि मिळदु टुख्ख।