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उमाळ / ओम बधानी

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फेर उमळी उमाळ जिकुड़ि म
तर खत्यैनि आंसु मुखड़ि म
सरिन बादळ खुद क जिकुड़ि म
बरख्या बादळ आंसु क मुखड़ि म।

तेरि माया कि कुटमुणि फूल बणिगे
रंगस्याळेगे दुन्या आंखि तणिगे
ताणा गाळि उपजी उंठड़्यों म
चुभदा सूल बणिक जिकुड़्यों म।

सितगौं म जु छै बणाग ह्वैगे
आंख्यौं न उठि मन तक पौंछिगे
आग माया कि लगी जिकुड़ि म
पिड़ा खुद की चमळैगे जिकुड़ि म।