Last modified on 12 मार्च 2018, at 13:26

मनोविनोदिनी-2 / कुमार मुकुल

Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 12 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |अनुवादक= |संग्रह=एक उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह दूसरी बार
सुन रहा था
उसे
खिलते पुष्पों से
एक वृत्त में खुलते
स्वरों के पीछे
खल खल करता
एक अन्य स्वर

यह खल खल
सुनने नहीं दे रही थी
ठीक से
कुछ और
जो कहा जा रहा था
मैं उसे सुनना चाह रहा था

एक मधुरिल स्वर
पगा हूं जिसमें मैं

उसे घोलती सी
यह स्वर लहरी
मेरे बाहर
जाने कहां
गिर रही थी।