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उम्मीदो शुक्रिया / सुन्दरचन्द ठाकुर

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उम्मीदो

शुक्रिया तुम्हारा तुम्हीं रोटी बनीं तुम्हीं नमक

ग़रीबी

तुमने मुझे रोटी और नमक बांटना सिखाया


आवारा कुत्तो

पूरी दुनिया जब दूसरे छोर पर थी इस छोर पर तुम थे मेरे साथ

बेघर

शाम के धुंधलके में

भोर का स्वागत करते हुए.