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देख लें हम चाह अब कितनी छिपी मंजिल में है / रंजना वर्मा

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देख लें हम चाह अब कितनी छिपी मंजिल में है
मौज से मिलने की चाहत तो अभी साहिल में है

जो लिखा अच्छा बुरा तूफान दिल का बह गया
वाहवाही की तमन्ना तो भरी महफ़िल में है

चल पड़े बनकर शिकारी पकड़ने को जानवर
अब शिकारी जाल में है जान भी मुश्किल में है

लूट खाने का मज़ा जिस की जबां पर चढ़ गया
लुत्फ क्या समझेगा वह जो मिल रहा हासिल में है

जुल्म सहने के लिये आवाम धरना दे रही
और अब इंसाफ़ की ताक़त यहाँ क़ातिल में है

हैं पढ़े लिक्खे यहाँ बरसों गुलामी के लिये
राज करने की मगर हिम्मत सभी जाहिल में है

जो बहुत दिन से घुमड़ती बात मन में थी कहीं
आज आखिर कह दिया जो भी हमारे दिल में है