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बुढापा / कन्हैयालाल डंडरियाल

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    बुढापा
मिल जनम ल्हें
ये संसार क अंत मा
अर सब्बुं चै पैलि
यान मि
सब्ज्यठ्यु बि छौं
अर निकाणसो
झणि कब बटे
येई ढुंगम बैठ्युं छौं
यई ढुंग मुड़ी
एक संहिता च
एक नक्शा च
सैन्वार , उकाळ अर
उंदार को तिराहा च
यखम बटे सब कुछ देखी सकदा तुम
वो द्याखो ..
जैकी सिर्गितिम छिन
उफरदी कूम्प
हैंसदा फूल
नाचदा नौन्याल
य सैन्वार च

अर द्यखणा छ्याँ
यीं तड़तड़ी उकाळ तैं
उचयीं गौळी
अधिती तीस तैं
बस्ता बोकी जांद नौन्याळ तैं
एक हांक तैं पिछान्दा तरुणु तैं
गृहष्टि क ....
बोझ मुड़ी रड़दा अद्कुडू तैं

यो यीं तरफ जख
लम्डदा ढांगा गौड़ी भैंसी
कथगै अभाग मनिख
रड़दा डांग झड़दा पत्ता
फ्ल्दी मारदा छिन्छाड़ा
भ्यटेंदि बौंळी
अर झणि कख जाणे कैबे मा
अटगदा बटवै दिखेंदन
या च उंदार
जु पट रौल पौन्छंद

एक हैंकु
बाटु बि च
 अमर पथ
जैक दुछव डि
सत्कर्म का
डाळ छन
पर उपकार से
जनम्यां फल छिन
पुरुषार्थ का
पसीना से धुईं ढुंगी छिन
परिश्रम्युं की
पैतुल्युं से पवित्र हुईं धूळ च
ये रस्ता फर हिटदिन
भाग्य तै संवरदा कर्मबीर
सर्वस्व त्याग करदा सिद्ध

जु म्वरद स्यू होंद अमर
यई त च अकल़ाकंट
किलैकि मि
म्वरण णि चांदु
द्यखण चांदु ....
अपण ह्तुन रळयाँ बीजूं तैं
अन्गर्दा उफ़रदा फुल्दा फलदा
बचपन नचदै कुदद मरद
जवानी ह्न्सदै ख्यल्द
पर मि ..
उगससी भरि भरी बि
बचण चांदु
अजी तैं
बच्युं छौं

कथगा दों
मिन ययाति बणि
नौनो मैं ज्वनी मांग
च्यवन बणि
यौवन खुणि तरसणु रों
दवाई खाणु रों
कैकयी की खातिर
राम तै बणवास दे
राम तैं रावणन
कै दिने घुल्याल
पर मि अबी तैं
बाटु निहळणु छौं
चिट्ठी बि ऐ रामै
चिट्ठी रसां तैं
पुच्छणु छौं

मि स्वार्थ मा अन्धो
धितरास्ट्र छौं
जैक लडिकुकि
हरेक महाभारत मा
कटघळ लगणि रै
फजला ब्यखुन तार आणे रैं
संजय नौ नौ ल्हेक बथाणु रै
मि टक्क लगैक सुणणु रों
हुन्गरा देणु रों
युधिष्ठर क दियां
पेंसनपट्टा क सार फर
मेरी लाटी आशा गांधारी
ल्हसौं क ऐंच चैढी बि
आम लिमाणि च
म्यारा चौछडि
रिटणि छिन समल़ोण
लौंकणु च भय भ्रम
खुदेणु च पराण
दगडि देणि च चिंता
दिखेणी च चिता ।

(अन्ज्वाळ कविता संग्रह पृष्ठ ११५-११७ )