Last modified on 28 मार्च 2018, at 10:21

मन अघोरी / चिन्मय सायर

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:21, 28 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चिन्मय सायर }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> मन अघोर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन अघोरी
घोर ध्यानम
ध्यानम बैठ्युं ब्रम्ह।
ईं कूड़ी की
द्वर ढकि लगीं जै
प्यटि प्याट यन स्वचणू भै
यखी म्यारु भि
मरघट ह्वे जा
मोरी जा म्यारु अहम्।
अहा !
नाम धाम की बिज्वाड़ औंगिरगे
अर तृष्णा -हिरुलि
तेरी जलुडी घाम लगिंगे
य दुनिया ह्वेगे ऐसी तैसी
वेकु , वासुदेवः सर्वम्।