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बिस्वास / अवधेश्वर अरुण

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हम बिस्वास चाहइले,
तू ग्यान देइत हत∙
हम तोहरा के समझे ला चाहइले
अपनइती के परिधि में
तू दुरूह बने ला चाहइत हत∙
तर्क के जाल से
हम कर्म चाहइले
तू काम रोको प्रस्ताव बन के
बहला देइत हत∙
हम बिस्वास के बदल बन के
बरसे ला चाहइले,
तू उरा देबे ला चाहइत हत∙
आश्वासन के आन्ही बन के
हमरा समझ में न अबइअ
तोहर विस्वास विरोधी रीति
तोहरा पता न हओ –
आस्था चालाकी से लमहर चीज होइअ,
बिस्वास हिमालय से जादा ऊँचा होइअ,
आ समझदारी आदमी के
नकारे के छद्म न हए
बल्कि स्वीकारे की पुन्य पर्व हए