थारै जागयां समचै ई जागै
देह, चित्त अर मन 
जिण में थड़ियां करतोड़ौ
म्हैं
थारौ, भूत, वरतमांन अर 
भविस!
थारी ई कूख जलमै 
तनमातरावां
वां सूं
पंच महाभूत।
आंरै अंगेज्यां
गुण 
ऊठै अगन झाळ
सरसै प्रिथमी 
पसरै सबद 
पीवतां रस 
करतां परस 
गंध बण बिखरै 
रूप-रूप निखरै
थूं !