इशरत-१
इशरत!
सुबह अंधेरे सडक की नसों ने आग उगली
तू क्या कर रही थी पगली!
लाखों दिलों की धडकनें बनेगी तू
इतना प्यार तेरे लिए बरसेगा
प्यार की बाढ में डूबेगी तू
यह जान ही होगी चली!
सो जा
अब सो जा पगली।
इशरत-२
इंतजार है गर्मी कम होगी
बारिश होगी
हवाएँ चलेंगी
उंगलियाँ चलेंगी
चलेगा मन
इंतजार है
तकलीफें कागजों पर उतरेंगी
कहानियाँ लिखी जाएंगी
सपने देखे जायेंगे
इशरत तू भी जिएगी
गर्मी तो सरकार के साथ है
इशरत-३
एक साथ चलती हैं कई सडकें।
सडकें ढोती हैं कहानियाँ।
कहानियों में कई दुःख।
दुःखों का स्नायुतंत्रा।
दुःखों की आकाशगंगा
प्रवहमान।
इतने दुःख कैसे समेंटूँ
सफेद पन्ने फर फर उडते।
स्याही फैल जाती है
शब्द नहीं उगते। इशरत रे!