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पहाड़-2 / विजय गौड़

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मोतिया-बिन्द पड़ चुकी आँखें गवाह हैं
जो चला गया यहाँ से
लौट नहीं पाया आज तक

यह एक व्यक्ति का चले जाना
और लौट कर आना भर ही नहीं है
यह तो चले जाना है
कई-कई पीढ़ियों का
अपने हल-बैल, भेड़-बकरी
जंगल-बुग्याल, गाड़-गधेरों को छोड़कर।