Last modified on 12 जुलाई 2008, at 13:26

वन-गंध / प्रेमशंकर शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |संग्रह=कुछ आकाश / प्रेमशंकर शुक्ल }} भ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भीतर भर रही है

वन-गंध

डालियाँ-टहनियाँ लहरा रही हैं ऎसे

जैसे हवा से

उनके रिश्ते का

एक महत्त्वपूर्ण जश्न हो


इस वन से गुज़रते

रह-रह कर आ रही है

तुम्हारी याद


वन-गंध के साथ

इसी वन से आनी थी

तुम्हारी महक भी

होना था एक-दूसरे को निहारते हुए

पर अफ़सोस!

चला जा रहा हूँ दूर

बहुत दूर!!