Last modified on 12 मई 2018, at 21:57

विधि ने स्वयं जिसे है निज हाथ से सँवारा / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 12 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विधि ने स्वयं जिसे है निज हाथ से सँवारा
है गर्व हमे जिस पर वह देश है हमारा

गिर ब्रह्म कमंडल से हिमगिरि शिखर पे आयी
पावन सलिल धरा पर ले आयी गंग - धारा

जिस कूल भानुजा के खेला कभी कन्हैया
वह कूल आज तक है प्राणों से हमें प्यारा

सरहद पे जागते हैं जिस देश के सिपाही
मिलता उसे सदा ही है जीत का इशारा

है वक्त गुजर जाता समझी न अगर कीमत
गुजरा हुआ समय फिर आता नहीं दुबारा

चलते रहो सुपथ पर करना न पाप कोई
भगवान ने दिया जो उस में करो गुजारा

जो स्वाभिमान वाले चलते हैं सिर उठा कर
झुक कर किसी के' आगे कब हाथ है पसारा