Last modified on 21 मई 2018, at 15:29

मिली / साहिल परमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:29, 21 मई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नूह् की कश्ती की तरह ज़िन्दगी मिली
जब से सनम मुझे तुम्हारी बन्दगी मिली

राम ने जो खटखटाए हर नगर के द्वार
थरथराती मौत से हैरानगी मिली

घूमता कर्फ़्यू मिला है भद्र शहर में
हालात में भद्दी पूरी शर्मिन्दगी मिली

संसद में घुसा शेर भूखा, निकला बोल के
नेता के रूप में ये साली गन्दगी मिली

मानिन्द मूसा की तुम्हें चलाता रहूँगा
देखने की दूर तलक दीवानगी मिली

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार