Last modified on 14 जुलाई 2008, at 12:05

नश्वर तारक / महेन्द्र भटनागर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 14 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=तारों के गीत / महेन्द्र भटनाग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इन तारों की दुनिया में भी मिटने का अमिट विधान छिपा !


जीवन की क्षणभंगुरता को इनने भी जाना-पहचाना,

बारी-बारी से मिटना, पर अगले क्षण ही जीवन पाना,

आत्मा अमर रही, पर रूप न शाश्वत; यह मंत्र महान छिपा !


जलते जाएंगे हँसमुख जब-तक शेष चमक, साँसें-धड़कन,

कर्तव्य-विमुख जाना है कब, चाहे घेरें जग-आकर्षण ?

इस संयम के पीछे बोलो, कितना ऊँचा बलिदान छिपा !


हथकड़ियों में बंदी मानव-सम विचलित हो पाये ये कब ?

अधिकार नहीं, पग भर भी बढ़ना है हाय, असम्भव !

चंचलता रह जाती केवल दृढ़ तूफ़ानी अरमान छिपा !