Last modified on 30 मई 2018, at 17:06

नूं थोर / मोहम्मद सद्दीक

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 30 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भरोसो भाज्यां
मिनख री जूण लाजै।
देखतां भाळतां मानखो ईयां खुळसी
ईंयां मिनख रै हाथां मिनखपणो
कदताईं रूळसी
कदताईं बिसवासां में विष घुळसी
बता तो सरी
आ सांच है या सपने में सपनो।
धाई धोत्यां भूखी सूथणां
अर नागी नेकरां रै हाथां
भरोसो भाटाऊं तुलसी।
काळी-पीळी कीड़यां रा नाळ रा नाळ
उकळतै तेल में तळीजतां देख
समूची पीढ़ी री आंख्यां रा डोरा
होग्या है राता लाल।
तातै तवै पर सिकती
तीखै ताकळै पोयोड़ी
मीठै गुलगुलै सो जूण
ठौड़ ठौड़ पसरयोड़ै कीड़ी नगरै सी
पळगोडां रै पगां तळै रोजीना
किचरीजतो देख
म्हारै नूंवां रो नूं थोर
पाछी पांगरै।