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मुक्तक-23 / रंजना वर्मा

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चाहते ग़र कामयाबी पग बढ़ा कर देखिये
आँधियों में धूल मुट्ठी भर मिला कर देखिये।
जख्म देने के लिए तो हैं सभी तैयार पर
हो सके तो जख्म पर मरहम लगा कर देखिये।।

बीत है जो गयी वो कहानी सुनो
लग रही जो नयी है पुरानी सुनो।
जब लहू से शहीदों के भीगी धरा
संगदिल हो गया पानी पानी सुनो।

पोत को लंगर उठाते देखना
शाम रवि को मुँह छिपाते देखना।
चाँदनी को चाँद से मिलते हुए
यामिनी को खिलखिलाते देखना।।

सब के मन सद्भाव चाहिये
जग में अटल प्रभाव चाहिये।
मुश्किल जीवन की राहों पर
सबसे सुखद निभाव चाहिये।

गल्ती हो किसी से भी तुम माफ़ किया करना
दुनियाँ में हर किसी से इंसाफ़ किया करना
दुर्भाव किसी के प्रति दिल में न पनप जाये
मन की विषम गली को नित साफ किया करना।।