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मुक्तक-80 / रंजना वर्मा

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किसी को दर्द दे दिल को खुशी नहीं मिलती
कभी दे गैर को दुख जिंदगी नहीं मिलती।
नहीं है प्यास बुझती है न नीर गंगा का
अगर हो प्यार सब से बेरुखी नहीं मिलती।।

आया सावन मास सखी सब झूल रहीं झूला
गाती मधुरिम गीत देख कर मन मेरा फूला।
याद रहा बचपन कजरी वो रिमझिम बरसातें
देखी मेंहदी रची हथेली मन सब दुख भूला।।

रात गलती रही दिन सुलगता रहा
उम्र ढलती रही ख़्वाब उगता रहा।
जिंदगी बिन कोई शर्त जीते रहे
खग हृदय आस के बीज चुगता रहा।।

अपनी क्षमताएं जान भी लीजे
क्रोध में काम मत कभी कीजे।
है अँधेरा प्रकाश की कीमत
मान अपमान सम समझ लीजे।।

सदा होता रहा है देश में सम्मान नारी का
मगर अब हो रहा अपमान है हर पग बिचारी का।
सभा में कौरवों के चीर द्रुपदा की बढ़ाई थी
इसी से तो जगत में नाम है बाँके बिहारी का।