Last modified on 15 जून 2018, at 10:50

मुक्तक-90 / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 15 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=मुक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँख तेरी खुली फूल खिलने लगे
हैं अजाने नयन यूँ भी मिलने लगे।
महमहाने लगी लो चमन की गली
ठोस पर्वत भी धीरज के हिलने लगे।।

गगनांगन में बिखरे ज्वार तिली के दाने
चन्दा रूठा भागी सन्ध्या उसे मनाने।
ठोकर लगी भोर को फूट गयी गागरिया
बिखर गई चाँदनी कहीं जाने अनजाने।।

नदी है प्यार में बहती समन्दर भी मचलता है
धरा के प्यार में पड़ कर ही सूरज रोज जलता है।
हवा बहती सदा देने को जीवन जीवधारी को
जगत के मार्गदर्शन के लिये चन्दा निकलता है।।

मिले जो प्यार से आ कर उसे तुम प्यार दे देना
जो माँगे प्रेम से कोई गले का हार दे देना।
न करना किन्तु भूले से कभी विश्वास दुश्मन पर
गले लग कर भी माँगे तुम न पर तलवार दे देना।।

एक सपना हूँ खुली नींद तो उड़ जायेगा
वो मुसाफ़िर हूँ किसी मोड़ जो मुड़ जायेगा।
बात इतनी सी है समझो तो बहुत गहरी भी
एक पल में ही कोई रिश्ता सा जुड़ जायेगा।।