Last modified on 15 जून 2018, at 10:57

मुक्तक-101 / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:57, 15 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=मुक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिंदगी यूँ ही गुज़र जायेगी शिकवा न करो।
दर्द गहरा है मगर दर्द को रुसवा न करो।
आग लग जाती है उठती जो बद्दुआ दिल से
ये भड़क जायेगी ऐसे उसे हवा न करो।।

सांसारिक कर्म सारे आप नित करते रहे
साथ मे श्रीकृष्ण प्यारे का भजन करते रहें।
मोह मायाबन्धनों को तोड़ देगा सांवरा
कृष्ण हरि का श्याम का यदि यों यजन करते रहें।।

आत्मोन्नति का काम अगर करना चाहो
भवसागर जंजाल अगर तरना चाहो।
हो आध्यात्मिक ज्ञान ध्यान परमेश्वर का
शून्य हृदय आनन्द अमल भरना चाहो।।

करें माँ कामना पूरी मगर विश्वास तो हो,
शरण जगदम्बिका की ले सहज उपवास तो हो।
पुकारो दिल से मैया को दया की चाहना लेकर
मिले वरदान दरशन का नयन में प्यास तो हो।।

हरी धरती हमारी है यहाँ आकाश नीला है
सुहानी भोर सन्ध्या का नजारा भी रंगीला है।
दिशायें गीत हैं गातीं हवा है गुनगुनाती जब
चहकते पंछियों का बोल भी कितना सुरीला है।।