अधर छूकर भी कंठ न कभी सींच सका,
उसी प्याले से मुझे मधु की आस रही ।
वो मुझमें खोजता रहा हर पल देवी,
मुझे उसमें बस इंसाँ की तलाश रही ।
मेरे भीतर रहकर भी जो साथ न था
मेरी धड़कन उसी के आस -पास रही ।
मुस्कुराने के सौ बहाने दुनिया में
फिर भी नम हुई आँखें , मैं उदास रही ।