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अधर छूकर(मुक्तक) / कविता भट्ट

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अधर छूकर भी कंठ न कभी सींच सका,
उसी प्याले से मुझे मधु की आस रही ।
वो मुझमें खोजता रहा हर पल देवी,
मुझे उसमें बस इंसाँ की तलाश रही ।
मेरे भीतर रहकर भी जो साथ न था
मेरी धड़कन उसी के आस -पास रही
मुस्कुराने के सौ बहाने दुनिया में
फिर भी नम हुई आँखें , मैं उदास रही ।