Last modified on 16 जुलाई 2008, at 23:09

अदम्य / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:09, 16 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दूर-दूर तक
छाया सघन कुहर
कुहरे को भेद
डगर पर बढ़ते हैं हम !

चट्टानों ने जब-जब
पथ अवरुद्ध किये
चट्टानों को तोड़
नयी राहें गढ़ते हैं हम !

ठंडी तेज़ हवाओं के
वर्तुल झोंके आते हैं
तीव्र चक्रवातों के सम्मुख
सीना ताने
पग-पग अड़ते हैं हम !
सागर-तट पर टकराता
भीषण ज्वारों का पर्वत
उमड़ी लहरों पर चढ़
पूरी ताक़त से लड़ते हैं हम !

दरियाओं की बाढ़ें
तोड़ किनारे बहती हैं
जल भँवरों / आवेगों को
थाम;
सुरक्षा-यान चलाते हैं हम !

काली अंधी रात क़यामत की
धरती पर घिरती है जब-जब
आकाशों को जगमग करते
आशाओं के / विश्वासों के,
सूर्य उगाते हैं हम !
मणि-दीप जलाते हैं हम !

ज्वालामुखियों ने जब-जब
उगली आग भयावह
फैले लावे पर
घर अपना
बेख़ौफ़ बनाते हैं हम !

भूकम्पों ने जब-जब
नगरों गाँवों को नष्ट किया
पत्थर के ढेरों पर
बस्तियाँ नयी
हर बार बसाते हैं हम !

परमाणु-बमों / उद्जन-शस्त्रों की
मारों से
आहत भू-भागों पर
देखो कैसे
जीवन का परचम फहराते हैं हम !
चारों ओर
नयी अंकुराई हरियाली
लहराते हैं हम !

कैसे तोड़ोगे इनके सिर ?
कैसे फोड़ोगे इनके सिर ?

दुर्दम हैं,
इनमें अद्भुत ख़म है !

काल-पटल पर अंकित है
'जीवन-अपराजित है !'