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साहस / महेन्द्र भटनागर

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माना, निरीह है आदमी किसी

अनहोनी के प्रति,
चाहे कितना समर्थ हो कोई
पर, जीतती नियति !
क्षण में ढह जाती मानव-निर्मिति
बलवान है प्रकृति,

है लेकिन स्वीकार हर चुनौती
हो जो भी परिणति,

नहीं रुकेगी, मानव ज्ञान और
विज्ञान की प्रगति !