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नदिया तीरे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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नदिया तीरे
बैठके गुमसुम
सिर झुकाए
सिर्फ लहरें गिनें
औरों की सुनें
होकर गुमसुम
हम क्यों भला,
अपनी कुछ कहें
सिर ऊँचा हो
तुम्हारा कर गहें
आगे ही बढ़ें
कामनाओं से लदी
तरणी लेके
भँवर पार करें
धारा में बहें
जो बाँट रहे पीड़ा
उनसे कहें-
साथ नहीं छोड़ेंगे
ये हाथ न छोड़ेंगे .