Last modified on 18 जुलाई 2018, at 18:39

संहार /राम शरण शर्मा 'मुंशी'

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:39, 18 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम शरण शर्मा 'मुंशी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये खुले-अधखुले अंग
केश के पाश
सुगढ़ तन की मरोड़,

             लावण्य, लोच
             मृदु हास
             सुदृढ़ भुज वल्लरियाँ
             वर्तुलाकार,

उच्छ‍वसित
कठोर उरोजों में
ज्यों छिड़ी होड़ !

             ये अंग
             गंग की धारा में
             निरुपाय, निसत्व, अपंग

सहज
कितने जीवित शव
रहे छोड़ !