Last modified on 17 जुलाई 2008, at 20:48

अंतिम अनुरोध / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 17 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निर्धन

बेहद निर्धन हूँ,
जाते-जाते
मुझको भी
जीने को
कुछ दे दो !

जो सचमुच
मेरा अपना हो
सुखदायी
मीठा सपना हो !

प्यासा
बेहद प्यासा हूँ,
जाते-जाते
मुझको भी
पीने को
कुछ दे दो !

निर्मल गंगा-जल हो,
झरता मधु-स्रव कल हो !

यों तो
अंतिम क्षण तक
तपना ही तपना है,
यात्रा-पथ पर
छाया तिमिर घना है !

एकाकी
जीवन अभिशप्त बना,
हँसना-रोना सख्त मना !