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मा (तीन) / राजेन्द्र जोशी

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लारलै बरसां बापू नीं रैया
बेगा सिधारग्या बै
म्हनै छोडग्या
म्हारी मा रै भरोसै।

म्हैं संभळतो
उण सूं पैली
इण जमानै नै लारै छोडती
म्हारी आंख्यां रा आंसू
नीं ढळ्या पलकां सूं बारै
रोक दीना
म्हारै अंतस तांई पूग'र
म्हारी मा।

बापू रै जावण सूं पैली
बांरी खिमता री ओळखाण
निकाळ लीनी
आपरै काळजै रै अंतस री गैराई।
हीमत राखती बापूजी रै जायां पछै
कदैई आकळ-बाकळ नीं होवती
तूटग्या सुपना, तेवर नूंवां नीं रैया
हुवता थकां ई पीड़
नीं दरसावती म्हारै साम्हीं
चैरै रा पाना अेकदम कोरा हुयग्या
जद बोलती ही इमरत टपकावती
मुळकती
अर सबदां री विगत
निरवाळी हुयगी
बापू रो सुर रळग्यो हो मा रै मूंढै।

म्हैं नीं समझ सक्यो कै
बापूजी नीं रैया
मा री प्रीत मांय
बापूजी भेळा है
बापूजी रै जायां पछै।