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मा (पांच) / राजेन्द्र जोशी

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बगत बीत्यो जावै
म्हैं बदळ रैयो हूं
बगत रै सागै-सागै
डीकरो, डीकरो नीं रैय सक्यो
नीं बदळ्यो सूरज
चांदो ई बिस्यो ई है
नीं बदळी म्हारी मा
बा मा है, म्हारी मा
चांदणी रात जियां चमकती
सूरज बरगो तेज है मा रै चैरै माथै
म्हैं डीकरो नीं रैय सक्यो।

म्हैं नीं रमूं रमतिया
म्हारै संगळियां भेळो
नीं है बगत म्हारै कनै
बदळग्यो हूं बदळतै टैम
नीं बदळी म्हारी मा
घरै डीकरै भेळी
म्हारी मा दादी-मा हुयगी।