Last modified on 24 जुलाई 2018, at 22:50

पाळसिया / राजेन्द्र जोशी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 24 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दरखत तो दरखत ई हुवै
पतझड़ हुवै
डाळ्यां सूनी हुवै
चिड़कल्यां नीं सरमावै
बातां करै, चांय-चांय करती
तिरस बुझावै
सूकी डाळ्यां बैठ
पाळसियां सूं।

काळी-पीळी आंधियां
सांय-सांय करती टैम
बैठी बिदक जावै
पाळसियै रै च्यारूंमेर
नीं हुवै हरै पत्तां रो सुख
सूकी डाळ्यां सुख देवै
पाळसिया हुवणै सूं।

इंदर राजा!
नीं बरसै तो ना बरस
छपक-छपक करती
हींडा हींडै चिड़कल्यां
तिरस बुझावै
नीं हुवै गरमी रो अैसास
पाळसिया हुवणै सूं।