Last modified on 18 जुलाई 2008, at 02:17

आपातकाल / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:17, 18 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर }}तूफ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तूफ़ान

अभी गुज़रा नहीं है !
बहुत कुछ टूट चुका है
टूट रहा है,
मनहूस रात
शेष है अभी !

जागते रहो
हर आहट के प्रति सजग
जागते रहो !
न जाने
कब.....कौन
दस्तक दे बैठे —
शरणागत।

ज़हर उगलता
फुफकारता
आहत साँप-सा तूफ़ान
आख़िर गुज़रेगा !
सब कुछ लीलती
घनी स्याह रात भी
हो जाएगी ओझल !

हर पल
अलस्सुबः का इंतज़ार
अस्तित्व के लिए !