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थ्वोडा़ हौर प्वथलों स्योण द्या / जयवर्धन काण्डपाल

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थ्वोडा़ हौर प्वथलों स्योण द्या
घाम औंण द्या उजाळु ह्वोण द्या
सुबेरि सुबेरी उठी, ढुंगा न फ़रा
डाळ्यों ते बि निन्द मा रोण द्या
यि फ़ल तुमुनें त खाण आखिर मा
अबि हर्यां छन पीलु रंग ओण द्या
तेकु मन हळ्कु ह्वे जालु थ्वौड़ा
तैकु कंठ भर्यूं ते ते रवोण द्या
आज सु चुप ह्वयूं भौत दिनु बटि
आज ते अपणि बात बिगोण द्या|