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हाइकु 174 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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जीवण नईं
म्हैं जी रैयो हूं बस
थारी यादां ई


गीत-गजल
सै थूं ईज रचावै
म्हैं तो कलम


जुदो हुयो थूं
अबोला रो रै‘या है
घर-आंगण