जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने दूर हो तुझसे बीतेंगे साल कितने
काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है भर छाती धंसकर जीता हूं जीवन कभी ये नियति देती उछाल भी हैं
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फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है खट-खट कर कैसे राह बनाता हूं थोड़ी जानता हूं आगे बैठा भूचाल भी है
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दिल्ली,97