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मानर बोले / अरुण हरलीवाल

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धरती करे सिंगार...
कि भइ, चउपाल सजे!
रोज-रोज त्योहर...
कि ढम-ढम ढोल बजे!

खेत-खेत मेहनत के फल हे,
आँख-आँख आसा के जल हे;
सुफल भेल सहकार...
कि ढम-ढाम ढोल जे!
धरती करे सिंगार...
कि भइ, चउपाल सजे!

फाग-राग में मानर बोले---
मइल समूचा मनके धेले,
दिन न होय बीमार...
कि ढम-ढाम ढोल जे!
धरती करे सिंगार...
कि भइ, चउपाल सजे!

जादू मउसम के अस छायल,
जस हम्मर तन-मन महुआयल;
नयनन मदन-खुमार...
कि ढम-ढाम ढोल जे!
धरती करे सिंगार...
कि भइ, चउपाल सजे!

गीत प्रीत के जब कोय गावे,
अउ जादे सुन्नर हो जा हे
सुन्नर ई संसार...
कि ढम-ढाम ढोल जे!
धरती करे सिंगार...
कि भइ, चउपाल सजे!