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सपनों की लड़ी / प्रभात कुमार सिन्हा

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चलो अपने सपनों की लड़ी बनाएँ
सपनों के मनकों की गिनती करें पहले
फिर उन्हें रेशम-सी कल्पना के सूत में पिरोयें
कल्पनाओं के सूत भी
बेहद पतले धागों के संगठन से बने हैं
फिर भी सहज नहीं है सपनों की लड़ी बनाना
हमारे उन्माद से असंभव है इसका निरूपण
अति-उत्साह के प्रबल वेग से जड़े
अड़ गये प्रश्नों को
गाँठ बन जाने से हम नहीं रोक सकते
अन्याय को एकबारगी तोड़ देने का दंभ
चूर कर सकता है सपनों की आवाजाही को
जरा-सी तन्द्रा पूरी ऊर्जा को बिखरा सकती है
प्रबाल उपस्थित हो सकते हैं विघ्न बनकर
सपनों की लड़ी को दृष्टि में लाने के लिये
चारों ओर आयुधों की तैनाती होगी अनिर्वचनीय।