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विपत्ति-ग्रस्त / महेन्द्र भटनागर

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बारिश
थमने का नाम नहीं लेती,
जल में डूबे
गाँवों-क़स्बों को
थोड़ा भी
आराम नहीं देती!
सचमुच,
इस बरस तो क़हर ही
टूट पड़ा है,
देवा, भौचक खामोश
खड़ा है!
ढह गया घरौंधा
छप्पर-टप्पर,
बस, असबाब पड़ा है
औंधा!
आटा-दाल गया सब बह,
देवा, भूखा रह!
इंधन गीला
नहीं जलेगा चूल्हा
, तैर रहा है चौका
रहा-सहा!
घन-घन करते
नभ में वायुयान
मँडराते
गिध्दों जैसे!
शायद,
नेता / मंत्री आये
करने चहलक़दमी,
उत्तार-दक्षिण
पूरब-पश्चिम
छायी
ग़मी-ग़मी!
अफ़सोस
कि बारिश नहीं थमी!