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मैं नचिकेता/ घनश्याम चन्द्र गुप्त

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मैं नचिकेता

मैं नचिकेता मैंने यम के द्वार पहुंच कर दस्तक दी थी द्वार खोल यम प्रश्नn पूछने आया हूं मैं अनुत्तरित प्रश्नोंू का मैं उत्तराधिकारी प्रश्नोंो का अक्षुण्ण स्रोत निर्झर नैसर्गिक प्रश्नष-प्रणेता मैं नचिकेता

मुझे पिपासा शुद्ध ज्ञान की सभी युगों में सतयुग हो या द्वापर हो या कलियुग त्रेता मैं नचिकेता

मुझे न भाते मुक्ता-माणिक रत्न खचित आगार सुसज्जित गेह स्वर्णमय मानव-निर्मित कलश-कंगूरे हो न सका प्रज्ज्वलित दीप यदि अन्तर में तो अर्थहीन है होम व्यर्थ आहुतियां मंत्रोच्चागर अधूरे दीप-दान का याचक मैं अन्तर्हित चिन्गारी का क्रेता मैं नचिकेता

मुझे न भाता मायामय सौन्दर्य क्षणिक क्षणभंगुर अस्थिर कृत्रिमता से लदा वसन-आभूषण सज्जित नर्त्तित पंचभूत-निर्मित लौकिक अतिरंजित मुझे नहीं अभिलाषा तुच्छ सुखों की धन की मुझे व्यापती है चिन्ता जन-जन के काल-ग्रसित जीवन की

मैं मृत्युमित्र निर्भय अशंक मेरे सन्मुख है ध्येय अटल दुर्गम दिगन्त मैं अग्निदूत मैं अग्रदूत उन्मुक्त दिशा का अन्वेषक मैं ज्योतिपुंज नूतन संभावित का प्रेषक मेरा विकल्प घनघोर तिमिर अज्ञान भ्रान्ति मैंने पाई उत्सुकता में सम्पूर्ण शान्ति

अनवरत साधना अनुशासन से ही निखरा मैं शान्ति-प्रणेता आत्म-विजेता नचिकेता

मैं नचिकेता

© घनश्याम चन्द्र गुप्त, २०१८ © Ghanshyam Chandra Gupta, 2018 १९९३, २००३, २०१२, २०१८