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हैरानी / महेन्द्र भटनागर

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कितना ख़ुदग़रज़
हो गया इंसान!
बड़ा ख़ुश है
पाकर तनिक-सा लाभ _
बेच कर ईमान!
चंद सिक्कों के लिए
कर आया
शैतान को मतदान,
नहीं मालूम
'ख़ुददार' का मतलब
गट-गट पी रहा अपमान!
रिझाने मंत्रियों को
उनके सामने
कठपुतली बना निष्प्राण,
अजनबी-सा दीखता _
आदमी की
खो चुका पहचान!