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कोई मौसम हमेशा ही कभी इक नहीं रहता / ईश्वरदत्त अंजुम

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कोई मौसम हमेशा ही कभी इक नहीं रहता
हवाए-गर्म से बच कर कोई चेहरा नहीं रहता

हज़ारों आफ़तें आ कर बशर के साथ चलती हैं
मुसीबत में घिरा इंसां कभी तन्हा नहीं रहता

परख करने पे कोई भी कभी पूरा नहीं उतरा
परख करने पे अपना भी कभी अपना नहीं रहता

अगर बैचैनियों ने दिल ज़रा भी घेर रख्खा हो
तो फिर कायम सुकूनो-चैन इंसां का नहीं रहता

बहारें लौटती हैं जब दिलों में वलवले ले कर
कोई पत्ता किसी भी शाख़ पर सूखा नहीं रहता

किसी के दिल में घर करना कोई आसां नहीं 'अंजुम'
घड़ी मुश्किल की पड़ने पर कोई अपना नहीं रहता।