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घबरा के ग़म से तुमको पुकारा कभी कभी / ईश्वरदत्त अंजुम

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घबरा के ग़म से तुमको पुकारा कभी कभी
दिल में तुम्हारा नक़्श उतारा कभी कभी

तड़पा हूँ किस क़दर की मिरा दिल भी रो दिया
देखा है आंसुओं का नज़ारा कभी कभी

अपना रहा न होश ज़माने की कुछ खबर
यूँ बेख़ुदी में तुम को पुकारा कभी कभी

सजदे में सर को रख दिया फिर आजिज़ी के साथ
सदका हुज़ूर का यूँ उतारा कभी कभी

फूलों से भी मिली है मसर्रत कभी मुझे
कांटों में भी किया है गुज़ारा कभी कभी

अपने न काम आये कभी जिस मक़ाम पर
ग़ैरों का भी लिया है सहारा कभी कभी

मौजों ने मेरा रास्ता रोक तो बार बार
फिर भी मिला है मुझ को किनारा कभी कभी

करता है इंहिराफ लहू से लहू यहां
खुद अपने ही खून से में हारा कभी कभी

मैं मात खाने वाला तो अंजुम न था मगर
कुदरत की मार ने मुझे मारा कभी कभी।